Mahatma Gandhi and his hypothesis on World Peace. An article was released on Dainik Bhaskar on the 30th of January, 2021.
In India, there are six days declared as Martyrs’ Day (at national level also known as Sarvodaya day). They are named in honour of those who are recognised as martyrs for the nation.
30 January is the date observed at the national level. The date was chosen as it marks the assassination of Mohandas Karamchand Gandhi in 1948.
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महात्मा गांधी – उनकी विश्व शांति की परिकल्पना
मोहनदास करमचंद गांधी- एक महात्मा
आज हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जिन्हें प्रेम से हम ‘बापू’ बुलाते हैं, की पुण्यतिथि मना रहे हैं। सारे विश्व में विभिन्न नेता, क्रांतिकारी, विचारक, लेखक और वैज्ञानिक उनसे प्रेरित हुए और अपने चारों ओर के समाज को परिवर्तित किया। उनकी शक्ति का स्रोत- कमजोरों का सशक्तिकरण; उनकी धुन का स्रोत-सत्य की अटल खोज; उनके आकर्षण का स्रोत- निर्भयता से अपने विश्वास का हमेशा अनुसरण करना; उनकी विश्वसनीयता का स्रोत- उन्होंने जो सिखाया उसका कठोरता से स्वयं पालन करना; उनके बल का स्रोत- सेवा और त्याग था। उन्होंने राजनीति का मानवीयकरण किया जो कि बहुत लोगों द्वारा एक असंभव कार्य माना जा सकता है| उन्होंने बिना स्वयं के लिए किसी उपाधि, पद, या ओहदा चाहे पूरे जीवन निस्वार्थ भाव से ऊंचे आदर्शों के लिए कार्य किया।
महात्मा गांधी के बारे में बात करना ऐसा है, जैसे सूर्य को दीपक दिखाना, क्योंकि वे केवल एक बहुआयामी व्यक्तित्व ही नहीं थे, पर अपने आप में एक पूरी संस्था थे। उनकी सोच दूरदर्शी थी, क्योंकि मानवता को लेकर उनका दर्शन वर्तमान में भी प्रासंगिक है और संभवत दूर भविष्य में भी रहेगा। श्रद्धांजलि के तौर पर राजनीति और आर्थिक व्यवस्था को लेकर उनके विचारों के अलावा, उनके विश्व शांति के स्वप्न के बारे में इस आलेख में प्रस्तुत किया जाएगा|
महात्मा गांधी – विश्व के विचारकों ने क्या कहा?
26 अगस्त, 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने गांधीजी को एक पत्र में लिखा, “पंजाब में हमारे पास 55 हज़ार सैनिक हैं और बड़े पैमाने पर दंगे हो रहे हैं| बंगाल में हमारी सेना में सिर्फ एक व्यक्ति है और वहां कोई दंगे नहीं है। एकल-व्यक्ति सीमा-शक्ति को मेरा सलाम!” ऐसी शक्ति और प्रभाव था एक नेता के तौर पर महात्मा गांधी का!
विश्व प्रसिद्ध है जबकि विंस्टन चर्चिल ने उन्हें ‘अर्ध नग्न फकीर‘ कह कर खारिज कर दिया था, अल्बर्ट आइंस्टीन ने उनके बारे में कहा था, “भविष्य की पीढ़ी के लिए विश्वास करना कठिन होगा कि ऐसा कोई हाड़-मांस का मानव इस धरती पर था|” उन्होंने अपने अहिंसा और सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों द्वारा सारे विश्व में करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया और अपनी मृत्यु के सत्तर वर्ष बाद आज भी वह करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
नेल्सन मंडेला गांधी जी को अपने महान अध्यापको में से एक मानते थे और कहते थे कि उनकी शिक्षाएं दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद को खत्म करने में सहायक रही हैं। संयुक्त राज्य अमरीका के डॉ मार्टिन लूथर किंग ने कहा, “ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए, महात्मा गांधी ने हमें युक्ति बताई|” किंग ने करोड़ों अफ्रीकन-अमेरिकी लोगों को अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए अहिंसा को एक शस्त्र के तौर पर इस्तेमाल किया। महात्मा गांधी ने म्यांमार, वियतनाम, मैक्सिको और अन्य छोटे या बड़े देशों में नागरिक अधिकार आंदोलनों को भी प्रेरित किया है।
जबकि करोड़ों लोग उन से प्रेरित हुए, वे स्वयं हेनरी डेविड थॉरियो की ‘On the Duty of Civil Disobedience’ (1849) और लियो टॉल्स्टॉय की ‘The Kingdom of God Is Within You’ (1894) से प्रेरित थे। महात्मा गांधी और टॉलस्टॉय ने दो वर्षों तक ‘अहिंसा का धार्मिक और व्यवहारिक प्रयोग’ के विषय पर पत्राचार किया। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने फार्म का नाम टॉलस्टॉय फार्म रखा, जहां गांधी जी और हरमन कालनबाक ने लोगों को सत्याग्रह का व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया।
1915 में दक्षिण अफ्रीका से वापिस आने के बाद महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की बर्बरता के खिलाफ आजादी की लड़ाई शुरूआत 1917 में चंपारण में नील की खेती विवाद पर किसानों के पक्ष से की, क्योंकि उनका विश्वास था देश की आत्मा गावों में बसती हैं| आने वाले वर्षों में उनका संदेश जन-साधारण में अनपढ़ किसानों से लेकर विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग तक और समाज के सब से अधिक सुशिक्षित वर्ग तक फ़ैल गया|
महात्मा गाँधी और आज के राजनेता
जनता के साथ काम करने वाले कार्यकर्ता को धूल से भी ज्यादा विनम्र होना चाहिए| संपूर्ण संसार अपने पैरों तले धूल को रौंदता है, किंतु एक कार्यकर्ता को इतना सरल साधारण होना चाहिए कि धूल भी उसे रौंद सके।
अधिकांश राजनीतिक वैज्ञानिक मानते हैं कि गाँधी जी एक पैगंबर और राजनेता का मिश्रण थे। वे अच्छे से जानते थे कि राजनीति में सक्रिय हुए बिना सामाजिक-आर्थिक शोषण और राजनैतिक दमनीकरण और इनके परिणाम स्वरूप भारतीयों के गिरते हुए नैतिक स्तर को दूर करना संभव नहीं है। यदि बिना राजनीति के भारत की बेरोजगार, भूखी जनता को भोजन और रोजगार दिया जा सकता तो गांधीजी सर्वथा राजनीति को नजरअंदाज कर देते। गांधीजी किसी एक राजनीतिक दल या वर्ग के नेता नहीं थे अपितु वे तो निर्विवाद रूप से संपूर्ण जनमानस के नेता थे।
वर्तमान राजनीति, मूल्यों और नैतिकता-विहीन है और विभिन्न नेता येन-केन प्रकारेण सत्ता को हथियाना चाहते हैं, परंतु गांधी जी ने अपने नेतृत्व की आधारशिला मुख्यतः धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्र-निर्माण के सिद्धांतों पर रखी, ना कि किसी प्रकार के भौतिक लाभ या व्यक्तिगत प्रशंसा के लिए। वे धर्म के राजनीतिकरण और किसी भी प्रकार के भाई-भतीजावाद के भी विरोध में थे।
आज के राजनेताओं के ठीक विपरीत गांधी जी को एहसास था कि यदि उन्हें जनता की सेवा करनी है तो, निजी संपत्ति, धन, वैभव और आराम को त्याग कर एक स्वैच्छिक सादा और गरीबी से भरा जीवन जीना होगा। भारत और दक्षिण अफ्रीका में होने वाले सभी आंदोलनों में गांधी जी ने सार्वजनिक धन को खर्च करने में संवेदनशीलता दिखाई और हमेशा स्वच्छ और पारदर्शी रहे। यह समझना बहुत कठिन है कि कैसे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी आज सार्वजनिक धन को भ्रष्टाचार में लिप्त होकर लूट रहे हैं।
महात्मा गांधी और आथिर्क विकासनीति
आज़ादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गाँधी ने ‘केवल स्वदेशी’ का युद्ध घोष दिया। उन्होंने हमारे देश की जीवन शैली बदल दी। सबको हाथ से बुना हुआ कपड़ा या जो कपड़े भारत में ही बने हैं, केवल वही पहनने होते थे। उन्होंने भारतीयों को ग्रामीण उत्पादों का उपयोग करने की सलाह दी। यह तीन महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करता- पहला, यह अंग्रेजों के आयात को कम करेगा जिससे उनकी अर्थव्यवस्था कमजोर होगी।; दूसरा, अगर हम विदेशों से कुछ नहीं खरीदेंगें तो हमारे उद्योग, हस्तशिल्प बढ़ेंगे; और अंत में यह भारतीयों को गावों में ही ज़्यादा से ज़्यादा रोज़गार और आय प्रदान करेगा।
ग्राम स्वराज:- भारत के 70% लोग गाँवों में रहते हैं। इसलिए भारत का विकास, गाँवों के विकास पर निर्भर करता है। तभी महात्मा गाँधी ने पंचायतीराज एवं ग्रामीण उद्योग के विकास जैसे खादी, हथकरघा, रेशम के कीड़ो का पालन, हस्तशिल्प, आदि की ज़रूरत पर अत्यधिक ज़ोर दिया, इससे कृषि पर बोझ कम होता। अगर गाँव वालों को रोजगार उन्हीं के गावों में मिले, तो यह शहरी क्षेत्रों में प्रवसान को कम करेगा और यह गरीबों के जीवन में सुधार करेगा।
गांधीजी जमींदारी प्रथा के विरोध में थे| उनके अनुसार मुख्य रूप से किसान के पास उतनी भूमि होनी चाहिए जो उसे फसलें उगाने, अपने उत्पादों से मवेशियों को पालने और खुद को सहारा देने की क्षमता दें। उनका मानना था कि लोगों के पास उतनी ही चीजों का मालिकाना हक होना चाहिए, जो एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आवश्यक हों और उससे अधिक कुछ भी पूरे समाज का है।
आप कभी नहीं जान सकते हैं कि आपके कार्य के क्या परिणाम आएंगे,
लेकिन अगर आप कुछ नहीं करते हैं तो कोई परिणाम नहीं होगा | (महात्मा गाँधी)
महात्मा गांधी, भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिकता के विषय पर
“यह मेरा दृढ़ मत है कि किसी भी संस्कृति के पास इतनी धरोहर नहीं है, जितनी हमारे पास है। हमने इसे जाना नहीं है| हमें इसके अध्ययन के लिए निरुत्साहित किया गया और इसका मूल्यह्रास करना सिखाया गया। हम इसका अनुसरण करना लगभग बंद ही कर चुके थे।”
गांधी जी ने लोगों को सभी धर्मों के वास्तविक तत्वों को खोजने और आध्यात्मिक की गहराई में उतरने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने प्रायः जनता को कुरान और बाइबिल का संदर्भ दिया और भगवत गीता के ज्ञान को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित भी किया। उनको विश्वास था कि इससे लोगों को जागृत करने में सहायता मिलेगी और भारत की विविधता पूर्ण संस्कृति को एकीकृत किया जा सकेगा।
किंतु आज के राजनेता गांधी जी और उनकी आध्यात्मिकता को भुला चुके हैं। आध्यात्मिकता का धर्म से कोई संबंध नहीं है। वे केवल वोट बैंक की राजनीति में विश्वास करते हैं और जनता को धर्म के नाम पर बांटने का प्रयास करते हैं, जिसका महात्मा गांधी और उनके सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है।
गांधी जी के आश्रम में प्रातः काल 4:00 बजे की सामूहिक प्रार्थना में सभी जाति, पंथ, धर्म, अमीर, गरीब, नेता और सर्वसाधारण लोग मिलकर पूजा करते थे और विनम्रता से भजन गाते थे। उनकी भजनावली में प्रथम भजन श्री गणेश को समर्पित था, अगला श्री सरस्वती मां और उसके बाद अन्य देवी-देवताओं के भजन होते थे। लोगों से इसी क्रम में गाने की अपेक्षा की जाती थी| इन सब के उपरांत बाइबिल से Lord’s prayer और कुरान की कुछ आयतें भी पढ़ीं जाती थी। इसके अलावा बुद्ध और जैन धर्म का भी उल्लेख होता था| हैरान करने वाली बात है कि विभिन्न देवी-देवताओं के भजनों के क्रम कुंडलिनी और उससे संबंधित चक्रों के क्रम के अनुसार ही हैं, जैसा कि सहज योग और अन्य दूसरे विभिन्न प्राचीन धर्मों के ग्रंथों में वर्णन किया गया है।
महात्मा गांधी और श्री माताजी निर्मला देवी
श्री माताजी निर्मल देवी सहज योग की संस्थापक हैं| श्री माताजी के पिता श्री प्रसाद राव साल्वे, महात्मा गांधी के निकट सहयोगी और भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। जब उनके माता-पिता भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे थे, तब 7 वर्ष की उम्र से ही श्री माताजी कई बार महात्मा गांधी के आश्रम में उनकी अभिभावकता में रहीं। श्री माताजी पर महात्मा गांधी का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे कई बार गांधी जी के साथ सुबह 4:00 बजे की सामूहिक प्रार्थना से पूर्व घूमने के लिए जाया करती थी। श्री माताजी ने कई बार याद किया कि किस प्रकार गांधीजी उनसे विभिन्न विषयों पर बातचीत करते थे और कहते थे कि बड़ों की अपेक्षा बच्चे कई बार अधिक अच्छा मार्गदर्शन दे सकते हैं।
गांधी जी कठिन कार्य पालक थे और उनका विश्वास था कि जब देश में आजादी के लिए गतिशीलता तेजी से बढ़ रही थी, कठोर अनुशासन का होना आवश्यक था। इस पर श्री माताजी ने उन्हें सलाह दी कि अंदर से लोगों को अनुशासित करने के लिए आंतरिक परिवर्तन ही एकमात्र रास्ता है और गांधीजी ने माना भी कि संभवतः आंतरिक परिवर्तन से विश्व शांति भी पाई जा सकती है| श्रीमाताजी का मानना है कि जिस प्रकार उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए सभी लोग एकजुट हो कर खड़े थे, अब समय आ गया है कि हम अपने झूठे आदर्शों, उद्देश्यों, भौतिक बेड़ियों से स्वतंत्र होकर अपने ‘स्व के तंत्र’ अर्थात सूक्ष्म तंत्र को जाने और ईश्वर से योग प्राप्त करें|
सहज योग ध्यान
सहज योग ध्यान, परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी द्वारा स्थापित, एक अनोखी ध्यान विधि है जिसके द्वारा सारे विश्व में, 100 से अधिक देशों में सभी धर्मों के लोग ध्यान करते हैं। हमारे शरीर में उत्थान और आध्यात्मिक विकास के लिए, हमारी रीढ़ की हड्डी में कुंडलिनी शक्ति और सात चक्र स्थित हैं| ये चक्र हमारी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए उत्तरदायी हैं। जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तो वह हमारे हमारे चक्रों का पोषण करती हुई हमारे अंतर को सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम की शक्ति से जोड़ती है। इसे बाइबल में ‘The Cool Breeze of Holy Ghost’, कुरान में ‘रूह’ और भारतीय पौराणिक ग्रंथों में इसे ‘परम चैतन्य’ कहा जाता है। पतंजलि ने इसे ‘ऋतंभरा प्रज्ञा’ कहा है।
महात्मा गांधी आक्रामकता में विश्वास नहीं रखते थे, जबकि हमारा मस्तिष्क चौबीसों घंटे केवल आक्रामकता और हिंसा के बारे में सोचता है। हम अपनी आंखों, वाणी और विचारों से हिंसा करते हैं। हम चाहे कितना भी प्रयास करें अपने चेतन मन को स्वच्छ करने की, परंतु वे हमारी 24 घंटे की क्रियाओं को शुद्ध करने के लिए काफी नहीं है। फिर हम अपने अवचेतन मन से विचारों की लगातार बमबारी से कैसे मुक्त होंगे?
सहज योग में कुंडलिनी जागरण के द्वारा हमारे अंदर एक परिवर्तन आता है और हम चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, कलह, विवाद, अनैतिकता, असुरक्षा आदि से मुक्त हो कर नैतिक, रचनात्मक, शांत, आत्मविश्वासी, क्षमाशील और एक संतुलित व्यक्तित्व बन जाते हैं| जब कुंडलिनी का जागरण होता है तब हम निर्विचार समाधि में चले जाते और अंदर से एकदम शांत हो जाते हैं। अन्तः शांति प्राप्त करने के बाद हम, शांति प्रसारित करने लगते हैं और अपने चारों ओर एक शांतिपूर्ण वातावरण का निर्माण करते हैं।
श्री माताजी निर्मला देवी ने स्वयं गाँव-गाँव जाकर, गांव में लोगों में पवित्रता व अबोधिता के कारण, सहज योग का प्रचार-प्रसार किया। उनका कहना था कि सहज योग गांव में बसता है। सहज योग में फसल की पैदावार बढ़ाने की क्षमता है, जिसके लिए जरूरत है केवल कुंडलिनी जागृति और उसके द्वारा साधक के नियमित ध्यान से प्रवाहित होने वाली दिव्य ऊर्जा का उपयोग करना। ऐसे दस्तावेज हैं कि सहज योग फसल की उपज को 30% से अधिक बढ़ाने में लाभकारी है। पूरे भारत में 3000 से भी अधिक सहज योग ध्यान केंद्र हैं जहां हम अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं या फिर इंटरनेट पर भी निम्नलिखित दी गई वेबसाईट पर भी यह प्राप्त किया जा सकता है|
आइए हम अपने स्वयं के भले के लिए और मानवता के उत्थान हेतु अपने आंतरिक परिवर्तन की आकांक्षा करें और बापू के सार्वभौमिक शांति के सपने को पूरा करने में अपने तरीके से योगदान दें।
वह परिवर्तन बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। …महात्मा गांधी