सूर्य देव को समर्पित – मकर संक्रांति त्यौहार
मकर संक्रांति त्यौहार, हिंदुओं के देवता – सूर्य देव को समर्पित है। जब सूर्य धनु से मकर राशि या दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर स्थानांतरित होता है, तब संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। संक्रांति का मतलब है, सूरज का एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करना है।
मकर सर्दियों के मौसम का अंत माना जाता है, और सर्दियों की तुलना में, लम्बे दिनों की शुरुआत होजाती है। इस त्यौहार पर लोग सूर्य की प्रार्थना करते हैं और आदि गुरु शंकराचार्य के अनुसार गांगजी, गंगा सागर, कुंभ और प्रयाग राज में स्नान करना चाहिए। परंपरा के अनुसार भक्त नदियों विशेषकर गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में डुबकी लगाते है।
सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है।
मकर संक्रांति के अनेको नाम
भारत के अलग-अलग हिस्से में मकर संक्रांति विभिन्न नामों के साथ मनाई जाती है, कर्नाटक में संक्रांति, तमिलनाडु और केरल में पोंगल, पंजाब और हरियाणा में माघी, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण एवं उत्तराखंड मे उत्तरायणी के नाम से जानी जाती है।
मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।
पंतग है स्वतंत्रता, उन्मुक्तता और शुभता का प्रतीक
इस दिन पूजा-पाठ और दान, स्नान का जितना महत्व होता है उतना ही महत्व पतंग उड़ाने का भी है. कई जगह मकर संक्रांति को पतंग पर्व भी कहा जाता है. इस दिन लोग छत पर जाकर रंग- बिरंगी पतंग उड़ाते हैं. पंतग को भारतीय संस्कृति में स्वतंत्रता, उन्मुक्तता और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथाएं।
प्रसंग 1: चूंकि, शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
प्रसंग 2: मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
प्रसंग 3: महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए , सूर्य के मकर राशि मे आजाने तक इंतजार किया था।
प्रसंग 4: इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की एवं सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता के अंत का दिन भी माना जाता है।
प्रसंग 5: मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का संबंध भगवान श्री राम से भी जोड़ा जाता है। जनश्रुति के अनुसार रामायण काल में मकर संक्रांति के दिन प्रभु श्री राम ने अयोध्या वासियों के उल्लास और शुभ की कामना से पतंग उड़ाई थी। वो पतंग उड़ते-उड़ते इंद्रलोक पहुंच गई। इंद्र लोक में जब इंद्रपुत्र जयंत की पत्नि को मिली। जयंत की पत्नि पतंग को देख कर प्रसन्न होने लगी। उनके मन में पतंग उड़ाने वाले के प्रति कौतूहल जागने लगा। उन्हें लगा की पतंग उड़ाने वाला इसे लेने जरूर आएगा। लेकिन राम जी ने पतंग लाने के लिए पवन पुत्र हनुमान जी को भेज दिया।
हनुमान जी ने कराए श्री राम के दर्शन
इंद्रलोक में हनुमान जी को देख कर जयंति की पत्नि ने पूछा की क्या ये पतंग आप ही उड़ा रहे थे। तब हनुमान जी ने कहा कि नहीं, पतंग उनके प्रभु श्री राम ने अध्यावासियों के आग्रह पर उड़ाई थी। इस पर जयंत की पत्नि ने प्रभु श्री राम के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। हनुमान जी के आग्रह पर भगवान राम ने जयंत की पत्नि को दर्शन दिए और उनको जीवन में शुभता और मंगल का आशीर्वाद भी दिया। मान्यता है इस दिन से ही मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा चली आ रही है।
सूर्य का ताप मानव जाति के लिए कल्याणकारी है।
भारत में सभी त्यौहार चंद्रमा की स्थिति के अनुसार होते हैं। इसलिए अलग-अलग वर्षों में इनकी तारीखें अलग-अलग होती हैं। मकर संक्रांति सूर्य की स्थिति पर आधारित है और यह त्योहार सूर्य के धनु राशि से मकर राशि राशि में, दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में परिवर्तन का प्रतीक है, इसलिए यह हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। .मकर संक्रांति पूरे भारत और दक्षिण एशिया में विभिन्न नामों से मनाई जाती है, असम में बिहू, तमिलनाडु में पोंगल, बिहार में दही-चुरा, शिशुर संक्रांत (कश्मीर), माघे संक्रांति (नेपाल), सोंगक्रान (थाईलैंड), थिंग्यान (म्यांमार) और मोहन सोंगक्रन (कंबोडिया)।
मकर संक्रांति का अर्थ “संक्रमण” (transition) है, अर्थात वह दिन जो कुछ परिवर्तन लाता है। इस दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी गति प्रारंभ करता है। यह उस दिन को इंगित करता है जब सूर्य गर्म हो जाता है। सूर्य का ताप मानव जाति के लिए कल्याणकारी है। यह पृथ्वी से प्राप्त होने वाली सभी वनस्पतियों और संसाधनों के लिए जिम्मेदार है। सूर्य के ताप के कारण ही हम चल पाते हैं, बात कर पाते हैं। इसलिए इस दिन हम देवी को फल और सब्जियां चढ़ाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कभी-कभी सूर्य की गर्मी मनुष्य को क्रोधित कर देती है। यदि मौसम का परिवर्तन या प्रकृति का परिवर्तन हमारे भीतर परिवर्तन लाता है तो यह उचित नहीं है और क्रोध करना गलत है। हमारे अस्तित्व के छह शत्रुओं में क्रोध सबसे बड़ा है। यही कारण है कि हम इस दिन गुड़ का सेवन करते हैं ताकि सूर्य की गर्मी बढ़ने पर मीठी-मीठी बातें करें।
सूर्य-शक्ति का अर्थ आत्मविश्वास भी होता है। सूर्य हमें गर्मी और प्रकाश देता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि सूर्य के ताप से झुलसना है या सूर्य के प्रकाश से आत्म-विश्वास प्राप्त कर दीप्तिमान बनना है।
सहजयोग संस्थापिका परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी के शब्द मकर संक्रांति पर
यह आज का दिन इतना शुभ है कि आप सभी को यहां होना चाहिए; क्योंकि आप चुने हुए सैनिक हैं – जो इस पृथ्वी पर सतयुग की स्थापना तक लड़ने जा रहे हैं। क्रान्ति का दिन है। “संक्रांत” का अर्थ है: “सं” का अर्थ है, आप जानते हैं, शुभ, “क्रांत” का अर्थ है क्रांति। आज पुण्य क्रांति का दिन है।
हमारे सूक्ष्म तंत्र में सूर्य की बहुत ही विशेष भूमिका है
दायीं नाडी (पिंगला नाड़ी), जिसे सूर्य नाड़ी भी कहा जाता है, हमारी शारीरिक और मानसिक या संज्ञानात्मक गतिविधि को नियंत्रित करती है। यह क्रिया का चैनल है। यह रचनात्मकता के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
दायीं नाडी या पिंगला नाड़ी , हमारे दाहिने तरफ की सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम की देखभाल करता है और मानसिक (संज्ञानात्मक) और शारीरिक कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। यह न केवल हमारी शारीरिक ऊर्जा और गतिशीलता को बढ़ावा देता है, यह बौद्धिक ऊर्जा प्रदान करता है जो स्मृति, ध्यान, फोकस, तर्कसंगत और विश्लेषणात्मक सोच जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ावा देता है। यह रचनात्मकता का चैनल भी है।
सूर्य नाड़ी क्रिया, योजना और भविष्यवादी सोच की ऊर्जा के लिए वाहक है, जो हमारी मानसिक और शारीरिक गतिविधियों को संचालित करता है।
इसीलिए जब हम सहज योग ध्यान का अभ्यास करते हैं, हम अपने ऊर्जा चैनलों को साफ करते हैं और इस प्रकार हम सांसारिक समस्याओं के चमत्कारी उपचार और समाधान प्रकट करते हैं क्योंकि हमारे चारों ओर दैवीय शक्तियों से जुड़ने के बाद, हम परम पिता परमेश्वर के यंत्र बन जाते हैं!
15-january
Bhaskar-PDF-15-Jan-23
DB-Jhansi-15-jan-2023