Article on Prakarsh Diwas or Guru Nanak Jayanti was covered by Dainik Bhaskar (Jhansi & Dehradun) where the teachings of Guru Nanak & Sahaja Yoga has been shared – it can be clearly seen that all True Spiritual Masters talked about Universal Love & brotherhood!
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गुरु नानक और सहज योग
गुरु नानक – एक महान सतगुरु
सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी को गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह के नाम से भी जाना जाता है और इन्ही ने सिख धर्म की स्थापना की थी | अंदर इत्यादि सभी के गुणों को समेटे हुए थे | वे अपने अंदर एक दार्शनिक, समाजसुधारक, धर्मसुधारक, कवि, देशभक्त, योगी, गृहस्थ और विश्वबंधुत्व सभी के गुणों को समेटे हुए थे| इसीलिए इनके विचार न केवल सिख धर्म के लिए अपितु सभी धर्म के लोगों के लिए प्रेरणादायक हैं |
गुरु नानक जी का जन्म 1469 पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर एक किसान के घर हुआ था। वह बचपन से ही गंभीर प्रवृत्ति के थे। बाल्यकाल में जब उनके अन्य साथी खेल कूद में व्यस्त होते थे तो वह अपने नेत्र बंद कर चिंतन मनन में खो जाते थे। गुरु नानक जी का विवाह सन 1485 में बटाला निवासी कन्या सुलक्खनी से हुआ। उनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। गुरु नानक के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा किन्तु यह सारे प्रयास नाकाम साबित हुए। यह देख उनके पिता कालू एवं माता तृप्ता चिंतित रहते थे। उनके पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा लेकिन पंडितजी बालक नानक के प्रश्नों पर निरुत्तर हो जाते थे और उनके ज्ञान को देखकर समझ गए कि नानक को स्वयं ईश्वर ने पढ़ाकर संसार में भेजा है। नानक को मौलवी कुतुबुद्दीन के पास पढ़ने के लिए भेजा गया लेकिन वह भी नानक के प्रश्नों से निरुत्तर हो गए। नानक जी ने घर बार छोड़ दिया और दूर दूर के देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। अंत में कबीरदास की ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के आदिगुरु हुए।
उस जमाने में हिन्दुओं तथा मुसलमानों में काफी दूरियाँ थी। इस दूरी को दूर करने के लिए गुरु नानक ने हिन्दू तथा मुस्लिम धर्मों के युगानुकूल तथा सार्वभौमिक विचारों को लेकर उन्हें एकता का संदेश दिया। सर्वधर्म समभाव के समर्थक नानक जी ने वर्ष 1499 से वर्ष 1524 तक 25 वर्षों तक कई लम्बी तथा कष्टदायी यात्राएं कीं। अपनी इन यात्राओ के दौरान उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों के धार्मिक स्थलों पर श्रद्धापूर्वक जाकर उस परम शक्ति को नमन किया, जिसे हम ईश्वर, अल्लाह, खुदा, वाहे गुरु, गॉड आदि अनेक नामों से पुकारते हैं।
इसीलिए गुरुग्रन्थ साहिब में मात्र सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं है, वरन् 30 अन्य हिन्दू संत और मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। इसमें जहां जयदेवजी और परमानंदजी जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं जाति-पाति के आत्महंता भेदभाव से ग्रस्त तत्कालीन हिंदू समाज में हेय समझे जाने वाली जातियों के महापुरुषों जैसे कबीर, रविदास, नामदेव, धन्ना आदि की वाणी भी सम्मिलित है। पांचों वक्त नमाज पढ़ने में विश्वास रखने वाले शेख फरीद के श्लोक भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं।
गुरु नानक देव जी ने जात−पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए ‘लंगर’ की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे−बड़े, अमीर−गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है, जहां हर समय हर किसी को भोजन उपलब्ध होता है। इस में सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है।
उनकी शिक्षाओं में मुख्यत: तीन बातें हैं:
- नाम जपो यानी प्रभु का स्मरण करो,
- कीरत करो यानी गृहस्थ बन कर रोजगार में लगे रहो और ईमानदारी से कमाओ,
- वंड छको अर्थात मिल बांट कर खाओ, जरूरतमंदों की मदद करो और अपनी आय का कुछ हिस्सा गरीब लोगों में बांटो|
वहीं उन्होंने अहंकार, क्रोध, लालच, भौतिक वस्तुओं से अत्यधिक लगाव और वासना से बचने की सलाह दी।
गुरु नानक और सहज योग
सिख के मायने जीवन पर्यन्त एक छात्र की भांति सदैव अच्छी बातों को सीखने वाला व्यक्ति होता है| आइए, सच्चे सिख बनकर हम, अंधविश्वास और आडंबरों के कट्टर विरोधी, सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी के 551 वें प्रकाश उत्सव के अवसर पर, उनके विचारों को एक अलग दृषिकोण से समझने का प्रयास करें|
मानव जीवन में अत्यधिक भौतिकता का प्रभाव बढ़ जाने के कारण मानव जीवन में दुःख बढ़ते जा रहे हैं। आज जब लोग धर्म के असली तत्व एवं आध्यात्मिक जीवन को बहुत कम महत्व देते हैं, गुरु नानक जी की शिक्षा हमको वापिस अपनी आत्मा की ओर ले जा सकती है।
गुरुग्रंथसाहिब में बहुत से सूक्ष्म संकेतों के द्वारा सहज योग के बारे में बताया गया है| परंतु सिद्ध गोष्टी एवं प्राण सांगली में खुलकर सहज का वर्णन है। सिद्ध गोष्टी अर्थात सिद्धों के साथ वार्ता, गुरु नानक की हिन्दू नाथ पंथियों के साथ बातचीत है, जो हिमालय की गुफाओं में रहते थे| जबकि प्राण सांगली में लंका के राजा शिवनाभ के साथ वार्ता है।
‘सहज’ की अवधारणा में गुरु नानक की आध्यात्मिक सोच प्रमुख और महत्वपूर्ण है। लेकिन यह ‘सहज’ केवल कहने या मौखिक अभिव्यक्ति के साथ नहीं हो जाता है। यह एक वास्तविकता है, एक वास्तविक मानव स्थिति है, एक ठोस, व्यावहारिक मानव उपलब्धि है।
गुरु नानक के विचार में सिख धर्म के लिए ‘सहज’ एक मुख्य सिद्धांत है जिस का तात्पर्य हुकम को स्वीकृत करना है। इस अर्थ में ‘सहज’ एक ऐसे व्यक्ति की आध्यात्मिक स्थिति होगी, जिसने ईश्वरीय इच्छा (हुकम, भाना, रज़ा) को स्वीकार किया है। इस प्रकार ‘सहज’ सिख धर्म में प्राप्य सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति है। यह सर्वोच्च आनंद है।
गुरु नानक के साथ साथ ‘सहज समाधि’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर सभी निर्गुण-सम्प्रदाय संत, कबीर, नामदेव, दादू और अन्य करते थे। गुरु नानक के कालखंड में महा सुख या जीवन मुक्ति ‘सहज’ अवस्था के रूप में प्राप्त करना ही सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य समझा जाता था और इसी को बाबा नानक आंतरिक अनुशासन और दिव्य वास्तविकता से सीधे संपर्क की अनुभूति कहते हैं। जो साधक ‘सहज’ को प्राप्त होता है उस की दिव्य स्थिति कैसी होती है वह निम्नलिखित दोहों में स्पष्ट है-
सहजे ग्रिह महि सहजि उदासी ॥ सहजे दुबिधा तन की नासी ॥
जा कै सहजि मनि भइआ अनंदु ॥ ता कउ भेटिआ परमानंदु || (अंग 236-237 II5II)
सहजे अम्रितु पीओ नामु ॥ सहजे कीनो जीअ को दानु ॥
सहज कथा महि आतमु रसिआ ॥ ता कै संगि अबिनासी वसिआ ॥ (अंग 237 II6II)
सहजे आसणु असथिरु भाइआ ॥ सहजे अनहत सबदु वजाइआ ॥
सहजे रुण झुणकारु सुहाइआ ॥ ता कै घरि पारब्रहमु समाइआ ॥ (अंग 237 II6II)
सहजे जा कउ परिओ करमा ॥ सहजे गुरु भेटिओ सचु धरमा ॥
जा कै सहजु भइआ सो जाणै ॥ नानक दास ता कै कुरबाणै ॥ (अंग 237 II6II)
भावार्थ
जिस मनुष्य में आत्मा का प्रकाश या सहज अवस्था प्राप्त हो जातीहै, वह सभी कार्यों को सहज तरीके से करता है। उसके हृदय से मेरे तेरे का भेद नष्ट हो जाता है। वह हमेशा सहज ध्यान और आत्मा के आनंद में रहता है| ईश्वर प्रेम का अमृत पीता है, और दूसरों को भी सहज ध्यान का दान देता है | उसका सच्चा धर्म जागृत होता है। वह निर्विचार होकर, परमात्मा के साथ एक हो जाता है। नानक कहते हैं, ऐसी सहज अवस्था प्राप्त किए हुए व्यक्ति के लिए वे अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हैं।
गुरु नानक एवं मानव सूक्ष्म तंत्र
गुरु नानक ने धूप, कमल, शिव-शक्ती, त्रिकुटी, अनहद, बज्र-कपाट, इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना शब्दों का प्रयोग किया है। निम्नलिखित कुछ दोहे हैं, जिनमें उन्होंने मानव के सूक्ष्म तंत्र का उल्लेख किया है और सुषुम्ना नाड़ी का जो मध्यम मार्ग है उसके बारे में तो कई बार लिखा है |
- सुन निरंतर सहज समाधि
तिह घर जाए तो मिटे उपाधि।
सहज समाधि का तात्पर्य निरंतर शून्य में रहने से है, जो प्राणी वहां तक पहुंच जाता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
- सुखमन महल करें जो डेरा।
ताको भवजल बहुर ना फेरा।।
जो प्राणी सुषुम्ना नाड़ी में चला जाता है, वह अमर हो जाता है। उसे जन्म मरण में नहीं आना पड़ता। अर्थात मुक्ति का मार्ग सुषुम्ना से होकर ही जाता है।
- मेर दंड की विखमी बाट, गुरु बिन कौन बनावे बाट।
इसी घाटी जो उतरे कोय, ताको जन्म मरण ना होय।।
सुषुम्ना का मार्ग बहुत दुर्गम है, इसे केवल गुरु ही बता सकता है और जो इस दुर्गम घाटी को पार कर लेता है उसका जन्म मरण का फेर समाप्त हो जाता है।
- गगन सरोवर कवल विगास।
भंवरा उरझ रहीयो तिह वास।।
सहस्रार खुलने पर कमल खिल जाता है तो प्राण रूपी भ्रमर उस में निवास करता है।
सहज योग की प्राप्ति/अनुभव
गुरु ग्रन्थ साहिब में लिखा है:
काहे रे बन खोजन जाई ॥
सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥१ ॥रहाउ ॥
पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई ॥
तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई ॥
बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआनु बताई ॥ ॥२॥(अंग – 684)
अर्थात
हे मानव! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है | वह तो सभी में निवास करता हुआ भी, सदा निर्लिप्त है | जिस तरह फूलों में सुगन्ध एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है | उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुम्हारे संग, तुम्हारे ही अंतर में छिपा हुआ है | उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो | जो कुछ भी बाहरी जगत में देखते हैं , जो आनंद हमें भौतिक जगत में प्राप्त होता है, उसका वास्तविक रूप तो हमारे ही आंतरिक जगत में छिपा हुआ है |
अब प्रश्न उठता है यदि ईश्वर हमारे भीतर भी और बाहर भी विद्यमान है तो क्या उस से सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है। हमने ईश्वर को कभी देखा नहीं है, केवल उसके बारे में सुना है। इस गहन एवं सूक्ष्म प्रश्न को सुलझाने के लिए परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ने 5 मई 1970 को सहज योग की स्थापना की, जिस के माध्यम से विश्व के आध्यात्मिक इतिहास में यह पहली बार संभव हुआ है कि हम अपनी शुद्ध इच्छा से परमात्मा से एकाकारिता प्राप्त कर सकते हैं।
हमारी उत्क्रांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए, हमारी रीड की हड्डी में सात चक्र और ईश्वर की शक्ति जिसे कुण्डलिनी कहते हैं, स्थित है । ये सभी चक्र हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए उत्तरदाई हैं ।
जब सुषुम्ना मार्ग के द्वारा कुंडलिनी जागृत होती है, तो वह चक्रों को पोषित करती हुई, हमें परमात्मा के दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जोड़ देती है और हमें सहज समाधी की स्थिति प्राप्त होती है, जिसका उल्लेख बार बार श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में किया गया है | कुंडलिनी जागरण और चक्रों के पोषण का एक महत्वपूर्ण लाभ यह होगा कि व्यक्ति में एक आंतरिक संतुलन आएगा और वह स्वस्थ हो जाएगा। जब कुंडलिनी का जागरण होता है तो आप निर्विचार समाधि में चले जाते हैं तब आप अंदर से एकदम शांत हो जाते हैं।
सिख धर्म के उपदेशों का अंतिम उद्देश्य मन की सहज अवस्था को प्राप्त करना है। एक स्थिति जो पूर्ण संतुलन है, प्राकृतिक और सहज है। एक ऐसी स्थिति जिसमें ईश्वरीय इच्छा और हमारे कर्म एक-दूसरे के पूर्ण सामंजस्य में होते हैं। | हर धर्म के शास्त्रों में इस सत्य को अलग अलग तरह से परिभाषित कर, स्पष्ट किया गया है कि सुगम जीवन, अंतस की शांति और विश्व शांति के लिए मानव को आत्मसाक्षात्कार अथवा योग प्राप्त करना ही होगा।
सिख धर्म की एक अनूठी विशेषता है, पवित्र शास्त्र गुरू ग्रन्थ साहिब का पालन और पूजा करना। लेकिन जैसा की ऊपर लिखे दोहों से स्पष्ट है कि परमात्मा को अपने अंदर ही खोजना है और सहज योग अपने अंतर को ईश्वर की सर्वव्यापी शक्ति से जोड़ने का एकमेव मार्ग है।
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