श्री कार्तिकेय - नकारात्मकता को नष्ट करने वाली शक्ति

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श्री कार्तिकेय नकारात्मकता को नष्ट करने वाली शक्ति – Article in Dainik Bhaskar, 6th Dec, 2022 on the auspicious occasion of Kartick Deepam.

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06-DECEMBER

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श्री कार्तिकेय
जो
रक्षा करतें है।
जो सभी बुराईयों का नाश करतें है।
जो ओजस्वी सेनापति है।

श्री कार्तिकेय का वास हमारे सूक्ष्म प्रणाली के  दायें मूलाधार चक्र में है।

भगवान शिव और देवी पार्वती या शक्ति के दूसरे पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, सन्मुख, सदानंद, स्कंद और गुहा आदि कई नामों से जाना जाता है। भारत के दक्षिणी राज्य में कार्तिकेय एक लोकप्रिय देवता है और उन्हें मुरूगन के नाम से जाना जाता है।

श्री कार्तिकेय ~ युद्ध के देवता

कार्तिकेय पूर्णता के अवतार हैं। ईश्वर की विशेष कृपा के स्वरूप श्री कार्तिकेय वीरता के प्रतीक है और युद्ध के देवता है। उनका जन्म राक्षसों को नष्ट करने के लिए ही हुआ है अर्थात वह मनुष्यों की नकारात्मक प्रवृत्तियों का नाश करते है। कार्तिकेय के छह मुखो के प्रतीक स्वरूप, उनका दूसरा नाम षडानन है, जिसका अर्थ छह सिर वाला है और यह अर्थ पांच इंद्रियों और मन के अर्थ से मेल खाता है। छह सिर भी उनके गुणों को दर्शाते हैं जो उन्हें सभी दिशाओं में देखने में सक्षम बनाता है। उनकी यह महत्वपूर्ण विशेषता सुनिश्चित करती है कि श्री कार्तिकेय उन सभी प्रकार के प्रहारों का मुकाबला करने में सक्षम हैं,जो उन्हें मार सकते हैं । युद्ध की परिकल्पना और कार्तिकेय के छह सिर यह इंगित करते हैं कि यदि मनुष्य जीवन की इस लड़ाई में कुशलता से खुद का नेतृत्व करना चाहता है तो उसे हमेशा इन छह राक्षसी अवगुणो से सतर्क रहना चाहिए। ये छह अवगुण है काम, क्रोध, लोभ मोह, मद और मत्सर।

श्री कार्तिकेय ~ पूर्णता के प्रतीक

कार्तिकेय एक हाथ में भाला लिए हुए हैं और उनका दूसरा हाथ हमेशा भक्तों को आशीर्वाद देता है। कार्तिकेय का वाहन एक पवित्र पक्षी मोर है जो अपने पैरों से नाग को पकड़ता है, यह नाग लोगों के अहंकार और इच्छाओं का प्रतीक है। मोर हमारी हानिकारक आदतों के विनाश और कामुक इच्छाओं पर विजय का प्रतीक है। इस प्रकार कार्तिकेय का प्रतीक जीवन में पूर्णता तक पहुंचने के साधनों की ओर इंगित करता है।

श्री गणेश के भाई श्री कार्तिकेय

श्री कार्तिकेय भगवान शिव और देवी पार्वती के दूसरे पुत्र, भगवान गणेश के भाई हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कार्तिकेय और गणेश के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया था कि दोनों में कौन बड़ा है मामले के अंतिम निर्णय के लिए भगवान शिव के पास भेजा गया था। शिव ने निश्चय किया कि जो कोई भी धरती का भ्रमण करके सबसे पहले लौटकर आएगा उसे बड़ा होने का अधिकार दिया जाएगा। कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर धरती का चक्कर लगाने के लिए चले गए, दूसरी ओर भगवान गणेश अपने दिव्य माता पिता के चारों ओर परिक्रमा करके लौट कर आ गए और श्रीगणेश को विजेता बनाया गया। इस प्रकार गणेश को दोनों भाइयों में बड़ा माना जाता है।

श्री कार्तिकेय के सम्मान में किये जाने वाले त्योहार

भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए दो प्रमुख अवकाश में से एक थाईपुसम है जोकि एक उत्सव की तरह मनाया जाता है।ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी पार्वती ने तारकासुर की राक्षस सेना को हराने और उनके राक्षसी कार्यों का मुकाबला करने के लिए भगवान मुरूगन को एक माला अर्पित की थी इसलिए थईपुसम बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है ।

ज्यादातर शैव हिन्दुओ द्वारा मनाया जाने वाला एक अन्य क्षेत्रीय त्यौहार स्कंद षष्ठी है, जो तमिल महीने के अक्टूबर-नवंबर के शुक्ल पक्ष के छठे दिन भगवान कार्तिकेय के सम्मान में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिकेय ने इस दिन पौराणिक राक्षस तारक का विनाश किया था। यह उत्सव दक्षिण भारत के सभी शैव और सुब्रमण्यम मंदिरों में मनाया जाता है। यह उत्सव परमपिता परमात्मा द्वारा बुराई की विनाश की याद दिलाता है।

श्री कार्तिकेय पर परम पूज्य श्री माताजी के विचार

श्री कार्तिकेय का आत्मसवरूप

वह शुद्ध एवम् पूर्ण है! वह गतिशीलता के प्रतिक है,जो निरर्थक बातों और बेकार की चीजों में लिप्त नहीं होता है; जो परिणाम दिखाता है।

यह श्री कार्तिकेय ही थे जिन्होनें प्रचंड राक्षशी प्रवृत्तियों वाले दानवों का वध किया था – जैसे तारकासुर, नरकासुर इत्यादि । शिव जी और माता पार्वती ने इसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए विवाह किया था ताकि एक वीर और शक्तिशाली शक्तिपुत्र उत्पन्न हो सके अर्थात शक्ति का पुत्र जो अति उग्र दानवीय शक्तियों का नाश कर सकें हैलोवीन, जो पश्चिमी संस्कृति का भाग है, भारतवर्ष में नरक चतुर्दशी कहलाता है और यही वह दिन है जब नरक के द्वार खोले जाते हैं और सभी राक्षसों को नर्क की ओर धकेला जाता है। इसीलिए श्री कार्तिकेय की पूजा – याचना से मनुष्य के अंदर छुपी राक्षसी प्रवृतिया समाप्त हो जाती हैं।

षडानन या श्री कार्तिकेय माता पार्वती और शंकर जी के पुत्र थें और वह रुद्रशक्ति की एक अति शक्तिशाली अभिव्यक्ति थें , वह एक प्रकार से परमात्मा की विनाशकारी शक्ति है और तारकासुर को मारने के विशेष उद्देश्य से ही उनको निर्मित किया गया था।

जब मूलाधार को स्वच्छ किया जाता है तो हम अधिकतर दाएं मूलाधार को उपेक्षित कर देते है।दायाॅ मूलाधार वह चक्र है जहां श्री कार्तिकेय का निवास है वही राक्षसी शक्तियों से हमारी रक्षा करते हैं। दायाॅ मूलाधार वह चक्र है जो श्री गणेश का समर्पण और चातुर्य प्रस्थापित करता है।दायाॅ मूलाधार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्यारह एकादश रुद्र में से दो _श्री गणेश और श्री कार्तिकेय हैं। रूद्र शैतानी आक्रमणों से हमारी रक्षा करते हैं और नकारात्मकता से लड़ने की शक्ति हमें देते हैं।

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Article in English-

Kartik-Deepam-English

Shri Kartikeya
The One Who Protects
The One Who Destroys All Evil
The One Who Is The Dynamic Commander

Right Mooladhara is the chakra which is abode of Shri Kartikeya in our Subtle System.

Kartikeya, the second son of Lord Shiva and Goddess Parvati or Shakti, is known by many names like Subramaniam, Sanmukha, Shadanana, Skanda and Guha. In the southern states of India, Kartikeya is a popular deity and is better known as Murugan.

Kartikeya: The War God

He is an embodiment of perfection, a brave leader of God’s forces, and a war God, who was created to destroy the demons, representing the negative tendencies in human beings.

Symbolism of Kartikya’s Six Heads

Kartikya’s other name, Shadanana, which means ‘one with six heads’ corresponds to the five senses and the mind. The six heads also stand for his virtues enables him to see in all the directions — an important attribute that ensures that he counters all kinds blows that can hit him.

The war imagery and the six heads of Kartikeya indicate that if humans wish to lead themselves efficiently through the battle of life, they must always be alert lest they are shown the wrong path by crafty people with the six demonic vices: kaama (sex), krodha (anger), lobha (greed), moha (passion), mada (ego) and matsarya (jealousy).

Kartikeya: The Lord of Perfection

Kartikeya carries in one hand a spear and his other hand is always blessing devotees. His vehicle is a peacock, a pious bird that grips with its feet a serpent, which symbolizes the ego and desires of people. The peacock represents the destroyer of harmful habits and the conqueror of sensual desires. The symbolism of Kartikeya thus points to the ways and means of reaching perfection in life.

The Brother of Lord Ganesha

Lord Kartikeya is the brother of Lord Ganesha, the other son of Lord Shiva and Goddess Parvati. According to a mythological story, Kartikeya once had a duel as to who was the elder of the two. The matter was referred to Lord Shiva for a final decision. Shiva decided that whoever would make a tour of the whole world and come back first to the starting point had the right to be the elder. Kartikeya flew off at once on his vehicle, the peacock, to make a circuit of the world. On the other hand, Ganesha went around His divine parents and asked for the prize of His victory. Thus Ganesha was acknowledged as the elder of the two brothers.

Festivals Honoring Lord Kartikeya

One of two major holidays dedicated to the worship of Lord Kartikeya is Thaipusam. It is believed that on this day, Goddess Parvati presented a lance to Lord Murugan to vanquish the demon army of Tarakasura and combat their evil deeds. Therefore, Thaipusam is a celebration of the victory of good over evil.

Another regional festival celebrated mostly by Shaivite Hindus is Skanda Sashti, which is observed in honor of Lord Kartikeya on the sixth day of the bright fortnight of the Tamil month of Aippasi (October – November). It is believed that Kartikeya, on this day, annihilated the mythical demon Taraka. Celebrated in all Shaivite and Subramanya temples in South India, Skanda Sashti commemorates the destruction of evil by the Supreme Being.

Her Holiness Shri Mataji Nirmala Devi on Shri Kartikeya
The spirit of Kartikeya

– that pure, absolute dynamism which doesn’t indulge into nonsensical things and useless things; which shows the results.

it was Kartikeya who killed Narakasura, the devil. And he was one of the worst of all, could not be killed. So, Shiva and Parvati were married for this special purpose to produce this powerful Shaktiputra, means the son of the Shakti, known as Kartikeya. And He was just born to kill this horrible devil, called as Narakasura. And He killed. That is the day, fourteenth day. It is something like Halloween, that day. Because that is the day they opened the gates of hell and put all the devils into hell.

…..Shadanana, Kartikeya, was the son of Parvati and Shankar who was a very powerful expression of Rudra Shakti, is that He is the killing power of God. And He was created specially for this purpose, to kill Narakasura.

When it comes to clearing Mooladhara we usually miss our right Mooladhara. Right Mooladhara is the chakra which is abode of Shri Kartikeya. He is the one who protects us from the demonic forces.

Right Mooladhara is the chakra who manifests wisdom and surrendering of Shri Ganesha. Right Mooladhara is also important as out of eleven Ekadesha Rudras two are Shri Ganesha and Shri Kartikeya. The Rudras protect us from satanic attacks and give us strength to fight negativities.

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